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Makar sakranti 2025Makar sakranti 2025

Makar Sakranti 2025 : नकारात्मक उर्जा होगी दूर | मकर सक्रांति पर करें ये 4 काम

 

मकर साक्रांति को सर्द ऋतु में आने वाला सबसे पावन पर्व मना जता है। इस मकर साक्रांति(2025) को आपके घर की नाकारआत्मक ऊर्जा को दुर करने के सबसे बेहतर पांच शुभ कार्य

इन पांच ऊपाय को करने से आपके घर की संपूर्ण नाकारआत्मक ऊर्जा सकरआत्मक ऊर्जा में बदल जायेगी।

1. स्नान करने का उपाय

मकर सक्रांति नियम

मकर साक्रांति के पावन पर्व पर गंगाजल से स्नान करना बहुत ही ज्यादा शुभ माना गया है लेकिन अगर आप गंगा स्नान नहीं कर पाते हैं तो आप स्नान करते समय पानी में गंगाजल एवं काले तिल का प्रयोग कर उस पानी से स्नान करें उस गंगा स्नान के बराबर का ही पुण्य प्राप्त होगा।
गंगाजल से स्नान करने के पस्चात अपने सभी देवी-देवताओं को नवीन वस्त्र धारण करवाएं एवं स्वयं नवीन वस्त्र धारण करें। इससे सभी देवी-देवताओं की कृपा आप पर बनी रहेगी।

2.भोग लगाने का नियम

मकर सक्रांति नियम

मकर साक्रांति के दिन आप कच्चे चावल और दाल की खिचड़ी बनाकर सभी देवी देवताओं को भोग लगाएं और आप खुद भी इसी का सेवन करें। इस के अलावा तिल से बनी चीजों का भी सेवन करें। मकर साक्रांति को खिचड़ी और तिल से बनी चीजो का सेवन करने से भी आपके कुंडली से शनी का प्रभाव दुर होता है।

3. दान करने का नियम

मकर सक्रांति नियम

तीसरा ऊपाय मकर साक्रांति के दिन सभी ग्रहों के नाम से अलग अलग वस्तुएं जैसे रूई, गर्म वस्त्र, चावल, तिल, आलू, गुड़, तेल इन सभी चीजों का दान करना चाहीए ।
इन सभी वस्तुओं का जरूरतमंद लोगों में पीड़ित लोगों में या फिर किसी मंदिर के पुजारी या पंडित पुरोहित जी को दान करने का भी बहुत महत्व माना गया है। मकर सक्रांति के दिन दान करने से आपको अनंत फल प्राप्त होगा एवं धन की वृद्धि होगी।

4. मकर सक्रांति के दिन पूजा का नियम

चौथा और आखरी उपाय मकर साक्रांति के दिन आप सबसे पहले स्नान करते हैं उसके पश्चात देवी देवताओं को भोग लगाते हैं उसके पश्चात दान करते हैं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण नियम
आपको एकांत वाश में बैठकर एक बहुत ही जरूरी पाठ आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना चाहिए है ।
आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से आपके हृदय को शांति मिलती है आपके घर आपके प्राणगण में जितनी भी नाकारआत्मक ऊर्जा होती है उन सभी ऊर्जाओं को सकरआत्मक ऊर्जा में परिवर्तित करने में मदद मिलती है।
मकर सक्रांति के दिन आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना बहुत ही शुभ माना जाता है।

आदित्य हृदय स्तोत्र हिंदी में –

इधर भगवान श्री राम थककर चिंता में लीन हुए रणभूमि में खड़े हुए|

उसी समय रावण भी युद्ध के लिए रणभूमि में आ गया|

यह सब देखकर ऋषि अगस्त्य भगवान श्री राम के समीप गए और ऐसे बोले|

सभी के हृदय में बसने वाले हे महाबाहो श्री राम! यह गोपनीय स्तोत्र सुनो|

इस चमत्कारी स्तोत्र के जप करने से तुम अवश्य ही अपने शत्रु पर विजय पा लोगे|

यह आदित्य हृदय स्तोत्र सबसे पवित्र और सभी शत्रुओं का नाश करने वाला स्तोत्र है|

इसका जप करने से हमेशा ही विजय की प्राप्ति होती है| यह अत्यंत ही कल्याणकारी स्तोत्र है|

यह स्तोत्र सभी कार्यो में मंगल, पापों का नाश करने वाला है|

इसी के साथ यह चिंता और शौक को भी दूर करता है और मनुष्य की आयु में भी वृद्धि करता है|

जो कि अनंत किरणों से शोभायमान, नित्य उदय होने वाली, देवों और असुरों के द्वारा नमस्कृत है|

तुम इस सम्पूर्ण विश्व में प्रकाश फ़ैलाने वाले संसार के स्वामी भगवान सूर्य देव का पूजन करो|

 महर्षि अगस्त्य कहते है कि सभी देवता इनके रूप है|

सूर्य देव अपने प्रकाश की किरणों से इस जगत को स्फूर्ति प्रदान करते है|

सूर्यदेव ही अपनी ऊर्जा के माध्यम से ही इस सृष्टि में देवतागण और असुरों दोनों का पालन करते है|

यही है जो ब्रह्मा, स्कन्द, शिव, इंद्र, कुबेर, प्रजापति, समय, काल, यम, चंद्रमा और वरुण आदि को प्रकट करते है|

यह पितरों, वसु, साध्य, अश्विनीकुमारों, मरूदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण और ऋतुओं को जन्म देने वाले प्रभा के पुंज है|

इनको अलग – अलग नामों से जैसे – आदित्य, सविता(जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य(सर्व व्याप्त), खग, पूषा, गभस्तिमान, भानु, हिरण्येता, दिवाकर और

हरिदश्व, सहस्रार्चि, सप्तसप्ति (सात घोड़ो वाले), मरिचिमान(किरणों से सुशोभित),

तिमिरोमन्थन(अंधकार का नाश करने वाले), शम्भू, त्वष्टा, मार्तन्डक, हिरण्यगर्भ,

शिशिर(स्वभाव से सुख प्रदान करने वाले), तपन(गर्मी उत्पन्न करने वाले),  भास्कर,

रवि, अग्निगर्भ, अदितिपुत्र, शंख, शीत का नाश करने वाले और

व्योमनाथ, तमभेदी, ऋग ,यजु और सामवेद के पारगामी,

धन वृष्टि, अपाम मित्र, विन्ध्यावीथिप्लवंग (आकाश में तीव्र गति से चलने वाले),

आतपी, मंडली, मृत्यु, पिंगल, सर्वतापन, कवि, विश्व, महातेजस्वी, रक्त, सर्वभवोदभव है|

नक्षत्र, ग्रह और तारों के अधिपति, विश्वभावन (विश्व की रक्षा करने वाले),

तेजस्वियों में भी तेजस्वी और द्वादशात्मा को नमस्कार है|

पूर्वगिरी उदयाचल तथा पश्चिमगिरी अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है|

ज्योतिर्गणों के स्वामी तथा दिन के अधिपति को नमस्कार है|

जो जय के रूप है, विजय के रूप है, हरे रंग के घोड़ों से युक्त रथ वाले भगवान को नमस्कार है|

सहस्त्रों किरणों से प्रभावान आदित्य को बारम्बार नमस्कार है|

उग्र, वीर और सारंग भगवान सूर्यदेव को नमस्कार है|

कमलों को विकसित करने वाले प्रचंड तेज वाले मार्तण्ड को नमन है|

आप ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों के स्वामी है|

सूर आपकी संज्ञा है| यह सूर्यमंडल आपका ही तेज है|

आप प्रकाश से परिपूर्ण है| सबको स्वाहा: करने वाली अग्नि के स्वरूप है|

रौद्र रूप आपको नमस्कार है|

अज्ञान, अन्धकार के नाशक, शीत के निवारक तथा शत्रुओं के नाशक आपका रूप अप्रमेय है|

आपकी प्रभा तप्त वर्ण के समान है|

आप ही हरि (अज्ञान को हरने वाले), विश्वकर्मा (संसार की रचना करने वाले),

तम या अँधेरे के नाशक, प्रकाशरूप और जगत के साक्षी आपको हमारा नमस्कार है|

हे रघुनन्दन, भगवान सूर्य देव ही सभी भूतों के संहार, रचना और पालन करने वाले है|

यही अपनी किरणों से गर्मी और वर्षा करते है|

यह देव सभी भूतों में अंतर्स्थित होकर उन्हें सो जाने पर भी जागते रहते है, यही अग्निहोत्री कहलाते है|

यही वेद, यज्ञ और यज्ञ से मिलने वाले फल है|

यह देव सम्पूर्ण लोकों की क्रिया का फल देने वाले देव है|

इसमें महर्षि अगस्त्य भगवान श्री राम से कहते है कि राघव!

किसी विपत्ति में, कष्ट में, कठिन मार्ग में तथा किसी भय के समय जो भी सूर्यदेव का कीर्तन या उन्हें याद करता है|

उसे किसी भी प्रकार दुःख या पीड़ा सहन नहीं करना पड़ता है|

आप एकाग्रचित होकर देवादिदेव सूर्यदेव का पूजन करो,

इस आदित्य हृदय स्तोत्र का तीन बार लगातार जप करने से आपको युद्ध में अवश्य ही विजय की प्राप्ति होगी|

हे महाबाहो इस क्षण आप रावण का वध कर पायेंगे|

इस प्रकार ऋषि अगस्त्य आये थे उसी प्रकार वपिस लौट गए|

उस समय ऋषि अगस्त्य का यह उपदेश सुनकर महातेजस्वी भगवान श्री राम के सभी शोक दूर हो गई|

प्रसन्न और प्रयत्नशील होकर |

परम हर्षित और शुद्धचित्त होकर भगवान श्री राम ने सूर्य देव की तरफ देखा और तीन बार आदित्य हृदय स्तोत्र का जप किया|

उसके पश्चात श्री राम जी ने धनुष उठाकर युद्ध के लिए आये हुए रावण को देखा और उससे युद्ध करने का निश्चय किया|

तब सभी देवताओं के बीच में खड़े भगवान सूर्य देव ने प्रसन्न होकर भगवान श्री राम की तरफ देखा और राक्षस रावण का अंत का समय निकट जानकार प्रसन्नता पूर्वक कहा “अब जल्दी करो”

आदित्य हृदय स्तोत्र संस्कृत और हिंदी में पढने यहाँ क्लीक करे – https://99pandit.com/blog/aditya-hridaya-stotra-in-hindi/

 

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